मै क्या हुं अब तक समझ न आया
कुछ अहंकार है कुछ प्रतिकार है
मेरे भी कुछ अलग से बिचार है
मै अब तक क्या खोया क्या पाया
जिन्दगी के किस धुन को गाया
बचपन गुजरा कुछ पाने मे
माहौल को अपने ढंग से जानने मे
दुनीया को देखकर कुछ सिखने मे
शब्दो के उलट फेर को लिखने मे
जिन्दगी मे ’कल’ का अर्थ बहुत गहरा होता हैमन
जो बित गया भूल जाते है सभी
आने वाला एक नयी तरंगे लिए सुनहरा होता है
ये कल ही हमे उमीद बढाता है
मंजील की तरफ़ बढते हुये सबसे लडाता है
आज हम किशोरावस्था पार कर चुके है
आधी बातो को लगभग जान चुके है
अच्छे बुरे कर्मो को पहचान चुके है
मै क्यू आया और कब जाऊंगा
या फिर जीवन को दुहराउंगा
कुछ बाते लिपटी पडी है
कुछ अरमाने सिमटी पडी है
जीवन क्या कह्ती है ये मै जान न सका
खुद को अभी तक पह्चान ना सका
क्या हो सकता है मकसद भला
मेरा यहां पर आने का
बचपन से लेकर अभी तक न जाने कितने
प्रकार के ॠणो को पाने का
कैसे ये उतरेगें इसका नही है ज्ञान
इस मौलीक्ता से अभी तक हु अन्जान
परोपकार हित जीवन बिताना
ह्रर एक पे विश्वास जताना
चरित्र को हरदम बचाना
कष्टो को किसी से मत दिखाना
कुछ बाते आज भी मन को झकझोरती है
कुछ नया करने से मेरे कदम को रोकती है
शायद एक दिन मै ’मै ’ को जान जाऊ
जीन्दगी के असली मकसद को पहचान जाऊ
इसी उमीद मे अग्रसर है हमारे कदम
कभी मंजील को जरुर चुमेंगे हम
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