मेरे पास शब्द नहीं है कुछ जताने को,
तुम मेरे कौन हो ये तुम्हें समझाने को |
जिसे मैं खुली आँखों से देखती हुँ,
वो हसीन खबाव हो तुम |
या जिसका जबाव मैं सपनों मे भी धूधंती हुँ,
वो जटिल सवाल हो तुम |
मेरी हर दुआँ , मेरा हर ‘काश ‘ हो तुम |
तुमसे ही दुरियाँ सब, फिर भी आस-पास हो तुम |
कभी मेरे अपनो से भी ज्यादा अपने,
तो कभी बिलकुल अजनबी हो तुम |
कभी मेरा सबकुछ तो कभी कुछ भी नहीं हो तुम |
एक पल को मेरी आँखों का इंतिजार हो तुम,
तो दूजे ही पल इंकार हो तुम |
जिसे पा के मैं अपनो से दूर हो जाउँ मेरी वो हार हो तुम,
या जिसे भूल के मैं खुद को हीं खो दूँ मेरा वो प्यार हो तुम |
मेरे ख़ुदा की रहमत की निशानी हो तुम,
या फिर मेरी अधूरी कहानी हो तुम |
या फिर मेरी अधूरी कहानी हो तुम
आखिर कौन हो तुम?
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