इबादत

इबादत करती हूँ उस मुल्क की-
जहाँ हर दिन मानो कोई जश्न हो,
जहाँ हर शाम महकती हो शान से;
जहाँ रातों को चांदनी की नज़ाकत भी,
बरसती है गुमाँ के साथ आसमान से!

इबादत करती हूँ उस मुल्क की-
जहाँ हर शहर में कोई बात ख़ास है,
जहाँ हर गाँव ओढ़ता मुहब्बत का लिबास है;
जहाँ मेहमान को ईश्वर सा पूजा जाता है,
जिसके हर दिल में बंधती आस ही आस है!

इबादत करती हूँ उस मुल्क की-
जिसकी पौराणिक कथाओं में भी सीखा सम्मान,
जिसके इतिहास पढ़कर होता है हर पल अभिमान;
जो अपने आप में अनमोल, अद्वितीय और ख़ास है,
जिसका हर देशवासी करते नहीं थकता गुणगान!

इबादत करती हूँ उस मुल्क की-
जिसके सेनानी हिफाज़त करने में नहीं कतराते हैं,
बड़ी शान से हम मिल-जुलकर झंडा फहराते हैं,
जहां रंज और द्वेष का दूर-दूर तक नहीं निशाँ है,
जिसमें ईद और दीवाली हम मिलकर मनाते हैं!

इबादत करती हूँ उस मुल्क की
जिसके कदम बढ़ते ही जाते हैं आगे ही आगे,
जो पिरोता ही जाता देशप्रेम के रिश्ते और तागे;
जो बढाता जाता हर किसी की उम्मीद और जोश,
जो बाँधता ही जाता इश्क और प्रेम के धागे!

इबादत करती हूँ उस मुल्क की-
ऐ दोस्त! साथ तुम भी मेरा देते ही जाना!
कितनी भी मुश्किलें आयें, पर न घबराना;
हम, तुम और हमारे सभी साथी प्रेम से,
लिखते ही रहेंगे रोज़ एक नया अफ़साना!


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