मेरे मन में उठ रही तरंगों को विराम दूं
तरंगों को शब्दों में पिरोना यह कृति खास है
तेरे नाम लिखा है जो ये शब्दों का जायना
शब्दों के इस काफिले को उस अनूठे स्वर की तलाश है
पाहुन में नहीं, कण-कण में ईश्वर का रूप बसता है
उस ईश का तो हर कलेवर में वास है मेरे मन के उपवन में तो रूप है उसका
बस उस रूप के लिए कुछ शब्दों की तलाश है
वो है तब तक है आस-पास सब मोहक
उसका बिछड़ना हर प्रवासी सुख का नाश है
अमावस्या की हर उस विरहिनी रात में
तारों के हर गुट को अपने चाँद की तलाश है
उस खोए हुए लम्हे को हर पल ढूँढता है वो
हृदय का उस हृदय के प्रति यह उत्तम प्रयास है
मेरी आंखें जो नम है पिछले एक अरसे से
उन दृगों के नीर को उस स्वर्णिम दृश्य की तलाश है
तुम थे जब सामने तो दिल की धड़कन में बसते थे
अब ना हो किंतु तुम्हारी यादें पास हैं तुम्हारे जाने से दह गए थे जो पल अनल में
उसी अनल के अवशेष में उस रूह की तलाश है
मन गाता है बहुत, दिल गुनगुनाता है बहुत
यूँ तो मेरे अंदर काव्य का ही श्वास है उस व्योम में जहां मिले परिंदों को आसमां
मुझे तो उस थिरकते हुए जन्नत की तलाश है
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