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  • ramakant posted an update 11 years, 3 months ago

    धूमिल पड़ चुकी आशाओ में,
    नवजीवन का रस तू घोल,
    सुप्त पड़ा है क्यों जनमानस,
    कब से रक्त रहा है खौल,
    तलवारों पर लगा लहू,
    अब हल्ला-बोल.. हल्ला-बोल,
    पहचान तू प्यारे अपनी ताकत,
    मत तू इसको कमतर तौल,
    बंद पड़े खिड़की दरवाजे,
    साहस के अश्वों को खोल,
    सोई पड़ी सरकारे देखो !,
    हल्ला-बोल… हल्ला-बोल ,
    सामंत गये एक अरसा बीता,
    अब तो लोकतंत्र का बजता ढोल,
    बदल मुल्क की तकदीरों को,
    केवल मत का है अब मोल,
    अब हल्ला-बोल.. हल्ला-बोल,
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    रमाकांत पारीक “अबोध”