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  • dipak posted an update 12 years, 4 months ago

    अनजाने में ही
    नगर बस सेवा की बस के
    हिचकोले ने
    दे गया
    जीवनभर का दंश।

    झेल पाना
    कितना मुश्किल है
    मेरे लिए …
    कुछ के लिए
    आसान कैसे
    छल-प्रपंच।

    तुमने तो भूलवश
    छुआ था क्षणिकभर
    आैर मजबूरी में
    मैंने थामा था तुझको
    तिस पर भी
    लील लिया था स्वयं ही
    शर्म के लिहाफ में।

    जाने किस मोड़ पर
    छूट गया वो दिन
    कहां गया वो मंजर
    आैर तुम भी …।

    क्यों आज भी
    अधरों पर
    होता है महसूस
    दीप की कंपकपाती लौ-सी।