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ramakant posted an update 11 years ago
धूमिल पड़ चुकी आशाओ में,
नवजीवन का रस तू घोल,
सुप्त पड़ा है क्यों जनमानस,
कब से रक्त रहा है खौल,
तलवारों पर लगा लहू,
अब हल्ला-बोल.. हल्ला-बोल,
पहचान तू प्यारे अपनी ताकत,
मत तू इसको कमतर तौल,
बंद पड़े खिड़की दरवाजे,
साहस के अश्वों को खोल,
सोई पड़ी सरकारे देखो !,
हल्ला-बोल… हल्ला-बोल ,
सामंत गये एक अरसा बीता,
अब तो लोकतंत्र का बजता ढोल,
बदल मुल्क की तकदीरों को,
केवल मत का है अब मोल,
अब हल्ला-बोल.. हल्ला-बोल,
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रमाकांत पारीक “अबोध”