सागर से जलकलश भर मेघमाला
प्यास धरती की बुझाती है
जहाँ हिमशिखरों से ओम की
प्रतिध्वनि गूंजा करती है
वो धरा भारत भूमि कहलाती है
जहाँ अथाह सागर की गरजती लहरों में
नदियों की कलकल ध्वनि में
महासिन्धु के गहन गम्भीर उद्घोष में
मंत्रो की प्रतिध्वनि गूंजती है
वो धरा भारत भूमि कहलाती है
जहाँ सूर्य की प्राणदायिनी किरणों में
चन्द्रमा के शीतल प्रकाश में
कोटि तारों की झिल मिल में
राम कृष्ण की छवि दिखती है
वो धरा भारत भूमि कहलाती है
जहाँ पौधों की नई कोंपलों में
फूलों की खिलती पंखुड़ियों में
पृथ्वी, अम्बर के कण कण में
ईशकृपा की झलक दिखती है
वो धरा भारत भूमि कहलाती है
जहाँ का बच्चा बच्चा सिपाही है
तिरंगे की आन पर लूटा दे प्राण है
जहाँ हर धड़कन मे बहता प्यार है
वसुदेव कुटुंबकम की भावना खिलती है
वो धरा भारत भूमि कहलाती है
Leave a Reply