है सारे जग से न्यारा
यह भारत देश हमारा
दिन-रात अर्चना करता
सागर अपनी लहरों से
चंदन माथे पर रखता
गिरिवर निज हिमशिखरों से
अमरत्व दिया नदियों ने
बन-बन कर अमृत-धारा
फलती हैं सब संस्कृतियाँ
इसकी उर्वर धरती में
पलती हैं सौ भाषाएँ
इस ममतामय गोदी में
अनगिन त्योहारों से है
जगमग हर इक पखवारा
जाने कितने हमलावर
है लील गई ये माटी
हँसते-हँसते सर देना
है वीरों की परिपाटी
मजबूत किया चोटों ने
त्रुटियों ने हमें सुधारा
विज्ञान, गणित, ज्योतिष सब
हमने जग को सिखलाया
है योग स्वास्थ्य की कुंजी
दुनिया भर को दिखलाया
हम पूज्य मानते सब को
क्या पत्थर क्या ध्रुव तारा
है नृत्य हमारा अनुपम
संगीत हमारा पावन
जन-गण-मन को हरषाते
हैं लोकगीत मनभावन
लहराता शीश उठाकर
दिन रात तिरंगा प्यारा
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