एक समय महान था भारत, पूरे विश्व की शान था भारत, फिर गए दौर पूराने, आए नए जमाने। जब धर्म ने ज्ञान को बाँटा, जात ने इंसान को बाँटा, आए अंग्रेज व्यापार करने, और यही पर रहकर हिंदुस्तान को बाँटा।
फूट डालों और राज करो, ये उन लोगों की हिक्मत थी, उनकी चालों में आना, हम लोगों की जिलत थी। फिर उठी स्वतंत्रता की चिंगारी, सन् सत्तावन में,
आ गई खून की लहर सावन में।
रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे और अनेक वीरों ने बलिदान दिया,
स्वतंत्रता की लड़ाई चालु रखो, देशवासियों को फरमान दिया,
किसी को परेशानी दी, तो किसी को आजादी का अरमान दिया।
ब्रतानी सरकार के खिलाफ आंदोलन बढ़ते गए, वीर-जवान, हँस-हँसकर फाँसी पर चढ़ते गए। जलियाँ वाला बाग मेँ, बहनोँ ने भी जान गँवाई,
देश भक्तोँ ने आजादी के नारोँ के साथ, ‘काले पानी’ मेँ जिंदगी बिताई। नेताजी,भगत सिंह,राजगुरु,सुखदेव और बिस्मल ने अंग्रेजो पर सीधे वार किया, और गाँधी जी ने अहिंसा के बोलो से सबका दिल जीत लिया।
सालों के संघर्ष के बाद, आजादी आई हाथ, जब आई सैंतालिस की, पंद्राह अगस्त वाली रात।
उस दिन हटें बादल भारत से, गुलामी और काल के, मंजिल पर आया मुल्क, और सदियों बाद रंग उड़े गुलाल के।
-जय हिंद
नाम: यश कुमार
आज़ादी की जंग
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