जब घ्यान अतीत का धरता हूँ

जब घ्यान अतीत का धरता हूँ
मैं नित्य यही सोचा करता हूँ
क्या था वो जिसे मैं पा ही लिया
कुछ छोड़ दिया या छूट गया
अब तृप्त हो ही गया खुद से
मैं गैर हो ही गया जग से
खुद को ही मैं अपना कर
बैर हो ही गया सब से
क्या करना था क्या कर रहा
कुछ पता नहीं क्यों डर रहा
सही वक्त आना होगा
जिसे मुझको ही लाना होगा
क्यों बंधन मुझको बांध रहा
क्यों खुद को ही मैं साध रहा
अब मंजिल मेरी दूर नहीं
हां मान लो तुम भी हूर नहीं
अब तुम खुद को जान लो
तुम कौन हो पहचान लो
छोड़ खुद को पीछे तुम बस बढे चलो
ना विमुख हो तम अपनो से
कुछ काम जरूरी जान लो
तुम मेरी बात भी मान लो
तुम सत्य को भी जान लो
तुम क्यों खुद से परेशान हो
मैं वक्त हूं,ना मुझसे तुम अनजान हो
जो बीत गया तुम जान गए
मैं क्या कर सकता मान गए
ऐसा न अब मानो तुम
सब सही होगा बस जानो तुम
क्या खोना है क्या पाना है


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