देवनागरी

वक्त और मुसाफिर जिंदगी

वक्त अपना कहर तू
इतना क्यों बरसाता हैं?
कभी दुःखी करता तो
कभी हँसाता हैं ।

जिंदगी के खेल बड़े बड़े, फिर क्यों
इंसान जान पूछकर अपने आप को हराता हैं?
शायद उसे पसंद हैं वो खुशियाँ,
जो हारने के बाद वो पाता हैं।

कभी कभी मैं पूछता इंसान से,
क्या प्यारी नहीं जिंदगी तुझे ,जो तू सब कुछ गवाता हैं?
उसने कहा “मेरे लिए जिंदगी बस एक मज़ाक हैं”,
शायद इसलिए वो उसे मौज मस्ती के साथ जीना चाहता हैं।

हाहाकार भरे इस जीवन में हर कोई,
सुख और समृद्धि से कहा रह पाता हैं।
अगर आगे बढ़ने की कोशिश करे तो
उसे अपना ही गिरा कर तडपाता हैं।

अब तो हर इंसान अपना रिश्ता गहरा बनाना
और मौत को घुटनों पर कर, अपनी बिगुल बजाना चाहता हैं ।
मुश्किलों की हर सीढ़ी अब कौन आराम और
बिना कोई ज़हमत के साथ चढ़ कर विजय पथ सजाना चाहता हैं।


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