धरती का स्वर्ग

धरती का स्वर्ग

मुकुट हिमालय का गंग हार शोभता है
सागर चरण इसकी सभ्यता महान है,
हरे-भरे खेतों से सजा है इसका परिधान
विश्व मे अनोखी इसकी आन-बान-शान है I

वीरों ऋषि मुनियों की धरा ये सदा से रही
ज्ञान सीखने को आया सारा ही जहान है
धन्य है वो नर नारी बसते जो इस देश
देशों मे अनूठा ऐसा देश हिन्दुस्तान है I [1]

भिन्न धर्म भिन्न जाति भाषा भी है भिन्न भिन्न
पर सभी यहाँ एक माँ की संतान है ,
यहाँ की फ़िज़ाओं जैसा और कहीं नहीं जहाँ
एक गली पढ़े जाते वेद औ क़ुरान हैं I

अतिथि को देव बना के यहाँ पे पूजते हैं
करते बड़ों का सदा आदर और मान हैं ,
जो भी आया इस भूमि सबको ही अपनाया
वसुधा कुटुम्ब सम इसकी पहचान है I [2]

ऐसा ये विशाल देश ऐसा ये महान देश
अत्याचारी दानव आज कैसा घुस आया है
जल रही आत्मा है इस भूमि भाग की औ
चहुँ ओर कैसा चीत्कार ये समाया है,

भूख से बिलखते बच्चे माँ की सूखी छाती नोचे
और कहीं गोदामों मे अन्न को सड़ाया है
राम औ रहीम का बाजार यहाँ बिक रहा
स्वार्थ साधना ने भाई-भाई को लड़ाया है I [3]

कर रही आवाहन अपने सपूतों का माँ
उठे चले आगे बढ़े हाथ अब मिलाते हैं
जो भी हुआ अब तक अब न आगे होने देंगे
माँ की अस्मिता पर होते हमलों को बचाते हैं ,

धर्म और विज्ञान का संगम बनेगा जहाँ
चहुँ ओर खुशहाली सुख शांति लायेंगे
नमन तुझे है माँ ये प्रतिग्या ले रहे है
इसे धरती का स्वर्ग फिर से बनाएँगे I [4]


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