मानव! भीष्म में भी तुम हो, कृष्ण भी तुम,
भूत भी तुम, भविष्य भी तुम,
जो बदल के रख दे पुरातन सोच,
उस ऊर्जा से युक्त भी तुम,
तुम वीर शिवाजी की धरती पर,
जन्मे भारत की शान हो,
चंद्रशेखर,भगत लड़े जिस मातृभूमि की आजादी को,
उस पवित्र भूमि की आन हो,
जिस मिट्टी को राणा ने चूम लिया,
उस मातृभूमि की अभिमान हो।
हो तुम मातृभूमि के सपूत,
सरहद पर अड़े चट्टान हो,
हो वीर तुम न अधीर तुम,
दुश्मन की सेना को बांध ले
ऐसे हो जंजीर तुम,
ना डर है ना तनिक सिकन चेहरों पर,
मृत्यु के पश्चात भी,
यमराज भी है चकित,
देख ऐसे स्वर्णिम मुस्कान को,
मानो वे कह रहे हो,
जब निकले अर्थियां वीरों की,
मजार में जब वे हो दफन,
मिट्टी के हर एक कण से रूहानियत महसूस हो,
उनकी शौर्य गाथा में कुरबानियत महसूस हो।
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