स्वर सारे गुंजित हो ………।


भारत को कहते थे
सोने की चिड़िया
सुख से हम रहते थे।


गोरों को भाया था
माता का आंचल
वह ठगने आया था


याद हमें कुर्बानी
वीरो की गाथा
वो जोश भरी बानी


कैसी आजादी थी
भू का बँटवारा
माँ की बरबादी थी


ये प्रेम भरी बोली
वैरी क्या जाने
खेले खूनी होली

सरहद पे रहते है
दुख उनका पूछो
वो क्या क्या सहते है


घर की याद सताती
प्रेम भरी पाती
उन तक पँहुच न पाती .


बतलाऊँ कैसे मैं
सबकी चिंता है
घर आऊँ कैसे मैं?


हैं घात भरी रातें
बैरी करते हैं
गोली से बरसातें।
१०
पीर हुई गहरी सी
सैनिक घायल है
ये सरहद ठहरी सी।

११
आजादी मन भाये
कितनी बहनों के
पति लौट नहीं पाये।

१२
है शयनरत ज़माना
सुरक्षा की खातिर
सैनिक फर्ज निभाना।

१३
एकजुटता से मोड़ो
राष्ट्र की धारा
आतंकी को तोड़ो .

१४
स्वर सारे गुंजित हो
गूंजे जन -गन – मन
भारत सुख रंजित हो


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